A gentle request— I would really appreciate you so much for reading it first and then giving it a like. I am really very grateful for your kindness, but it would really help me in improving. Thank you. Enjoy your read.
"आज यहाँ बारिश हो रही थी," यहीं से कल लिखना शुरू किया था मैंने। लेकिन फिर उसे कॉपी करके भूल गई और नोट्स में पेस्ट किया ही नहीं।
तो बस अब दोबारा वही कोशिश है कि कल के उस मनमोहक दृश्य को थोड़ा और बेहतर तरीके से बयान करूं। हां, थोड़ा अफसोस जरूर है कि वह टुकड़ा खो गया।पर कोई चिंता का विषय नहीं है, फिर से लिखने में भी मुझे कोई हर्ज़ नहीं।
तो बात ऐसी है कि कल यहां बहुत वर्षा हुई थी।
देखा जाए तो ढंग से बारिश कल ही हुई थी। उसके पहले तो बस मेघ आते, अपनी एक झलक मात्र दिखलाते, और बस हवा की तरह अदृश्य ही हो जाते थे।
छत पर जब ज्यादा वर्षा होती है, तो पानी भर जाता है। हमारी प्रिय माता श्री के कठोर अनुग्रह करने पर, हमने अपने आलसी पैरों को समझाया और अपनी पसंदीदा जगह पर, हमारे अभिन्न अंग फोन के साथ पहुंच गए।
इतनी ग्लानी हो रही थी छत की फर्श पर कदम रखते ही, कि मैं उसे बयां नहीं कर सकती।
इतना मनमोहक दृश्य था, और मेरा यहां आने का मन नहीं हो रहा था? आखिर मुझे हो क्या गया है?
मैंने अपने प्रिय प्रेमी आकाश की ओर देखते हुए सोचा।
फिर मुझे याद आया की माता श्री ने तो छत की नाली में लगी हुई जाली को साफ करने का आदेश दिया था।
मैं उसकी तरफ मुड़ी ही थी कि मेरे प्रिय मेघों ने मुझे आवाज दी। हां, मेरे मेघ बात कर सकते हैं। आपने उनके प्रसिद्ध गीत को तो सुना ही होगा—गर्जन।
छत का पानी निकल ही चुका था। नाली साफ करने की आवश्यकता ही नहीं थी।
पता नहीं मां कब इतनी चिंता करना बंद करेंगी?
आखिर यह घर भी तो उनकी संतान ही है। वह इस पर भला कैसे आंच आने दे सकती हैं?
उनके मुंह से जितनी कहानियां मैंने अपने जन्म की सुनी हैं, उतनी ही, या शायद उनसे ज़रा सी कुछ ज्यादा ही कहानियां, मैंने इस घर के जन्म, अथवा निर्माण की सुनी है।
देखते नहीं हो आप कि जब भी बिजली चली जाती है, या मोटर खराब हो जाती है, या जब कहीं कोई दीवार सीड़न खाने लगती है, तो हमारे माता-पिता उतने ही चिंतित हो जाते हैं, जितने वह हमारी स्वयं की तबीयत खराब होने पर हो जाते हैं। तो बस, उनकी यह चिंता बिल्कुल स्वाभाविक ही है।
अरे यह क्या? मैं बात अपने प्रिय प्रेमी की कर रही थी और मैं कहां पहुंच गई ! माफ कीजिएगा ! ज्यादा बोलने की मेरी पुरानी आदत रही है।
चलिए, एक और कोशिश के साथ, फिर से शुरू करते हैं।
तो मैं छत की सबसे ऊपरी जगह—हां वहीं जहां हमारे घर की दूसरी टंकी रखी जाती है, वही जगह इसके इर्द-गिर्द दीवार नहीं होती और जहां कुछ सीढ़ियों से पहुंचा जा सकता है—पर दौड़ कर चली गई।
वहां पहुंचते ही मुझे साक्षात, अपने प्राण प्रिय प्रेमी—आकाश—के अद्भुत दर्शन हुए।
उसके काले-काले घुंघराले बाल अस्त व्यस्त होते हुए भी बहुत मनमोहक प्रतीत हो रहे थे। मेरी प्यासी आंखों को तो जैसे तृप्ति प्राप्त हो गई।
मैं, उसके विशाल, दुर्लभ रूप को चारों तरफ मुड़ मुड़ कर निहार रही थी।
एक मिनट- यह ज्यादा नहीं हो गया थोड़ा?
मुझे लग रहा है कि ज्यादा हो गया है। तो अब आकाश मेरा प्रेमी नहीं है, वह सिर्फ मेरा परम मित्र है। ठीक है ?
मेरे सामने जो दृश्य था वह कुछ इस प्रकार था-
हमेशा सबसे खूबसूरत और कोमल नीले रंग वाला शीतल आसमान,आज अलग सी वेशभूषा में था।
उसकी सबसे निचली परत, जो मुझे दिखाई दे रही थी, वह बिल्कुल परम सत्य की भांति श्वेत,चमकदार और साफ थी।
वह उज्जवल परत एक मोटी रेखा के समान प्रतीत हो रही थी। जो उत्तर से होते हुए, पूर्व में जाकर, अनेक अदृश्य किरणों में बिखर जा रही थी।
उसके ऊपर गाढ़े नीले और सफेद रंग के मिश्रण से जो रंग उत्पन्न होता हो, उसे रंग की एक चादर, कुछ ऊपर तक फैली हुई थी।
इस चादर को देख ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मानो यही मेरी मंजिल है और मुझे बस इसी में खो जाना है।
मेघ भी यहां ऐसे अनोखे आकारों में थे कि लग रहा था कि बस आज श्री कृष्ण के, अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए समय के, दर्शन हो रहे हैं।
मेरे प्रिय मित्र आकाश को मुझसे अनेक शिकायतें होंगी। लेकिन मुझे भली भांति पता है कि उसे मेरे अभिन्न अंग, मेरे फोन, से सबसे ज्यादा शिकायतें हैं।
कभी उससे बातें करते-करते मेरा मन गाने सुनने को ललचा जाता है, तो कभी उसकी मनमोहक छवि को अपने यादों के बक्सों में कैद करने को।
इस बात पर तो कितनी बार उसने मुझे डांटा भी है। पर शायद अब कुछ हद तक आसमान ने भी मेरे अभिन्न, अखरते अंग को अपना लिया है।
मैंने फोन निकाला और सबसे पहले उत्तर के दृश्य की तस्वीर, नहीं तस्वीरें, खींची।
मैं अपने दाएं की ओर मुड़ी और उधर के दृश्य को थोड़ा और भिन्न पाकर वहां की भी तस्वीरें लीं। मैं फिर से और दाएं की ओर मुड़ी। दक्षिण मेरी आंखों के प्रत्यक्ष सबसे खूबसूरत चेहरा लिए हुए, नृत्य सा कर रहा था।
नहीं, दक्षिण की बात नहीं कर रही मैं; मैं आकाश के दक्षिण रूप की बात बता रही।
इधर मेघ नील और श्वेत दोनों तरह के वस्त्र पहने हुए थे। नील मेघ नदी के समान लग रहे थे। और श्वेत बादल पहाड़ों की नकल उतारने की कोशिश कर रहे थे। फिर क्या था? अनेकों तस्वीरें खींचने के बाद, मैं थोड़ा और मुड़ी, पर पश्चिम थोड़ा निराशाजनक था।
पता नहीं यह सामने वाले लोगों को चौथी मंजिल बनवाने की कौन सी जरूरत आन पड़ी थी? उनकी वजह से ही बेचारे ढलते सूर्य की लालिमा से बातें नहीं हो पातीं। पर कोई बात नहीं आकाश मुझे कभी निराश नहीं करता।
उसने मुझे आवाज़ लगाई और जैसे ही मैंने सर उठाकर ऊपर की ओर देखा, तो मुझे फिर से असीम आनंद की अनुभूति हुई। काले-काले घुंघराले मेघ, पूरे तारामंडल को अपनी जुल्फ़ें दिखा दिखा कर चिढ़ा रहे थे और उन्हें लहरा लहरा कर नृत्य कर रहे थे।

फिर वही हुआ, तस्वीरें, चेहरे पर स्वतंत्र, बिना बनावटी, स्वाभाविक, बदसूरत सी मुस्कान और आंखों में शीतल चमक।
कुछ पंछी भी आज मुझे चिढ़ा- चिढ़ा कर परेशान कर रहे थे।
कह रहे थे, "हां-हां तुम जैसे तुच्छ इंसान, जो अपने आप को सबसे शक्तिशाली और महान प्रजाति समझते हैं, वह असल में महान नहीं निर्बल और बेवकूफ हैं।
तुम लोग बस गगन की तस्वीरें ही खींच सकते हो, असल में क्या कभी बादल छू पाते हो? या कभी इस पार की स्वच्छ मुलायम हवा को महसूस कर पाते हो? नहीं ना? और करो भी कैसे? तुम सब ढोंगी हो।
तुम्हें विनाश के अलावा आता ही क्या है? छोड़ो, किस मनहूस के साथ अपना समय व्यर्थ कर रहा मैं? चला उड़ने और बादलों के खेल में हिस्सा लेने। तुम बस वहीं बैठे रहो। उड़ना तो दूर, तुम तो अब चलना और दौड़ना भी भूल गए हो। बैठे रहो अपने माचिस के डिब्बो जैसे कमरों में," और कहकर उड़ जाते थे।
पर आज आकाश ने मुझे इतना खुश कर दिया था कि आज इन पंछियों से भी जलन नहीं हो रही थी। मैं आज खुद ही पंछी की तरह मन ही मन उड़ रही थी।
एक गहरी सांस ली मैंने और आसमान ने फिर से मुझे एक भेंट थमा दी। हवा बहने लगी थी, और मेरे प्रिय मेघ, एक आज्ञाकारी संतान की भांति, उसके संग पीछे-पीछे चलने लगे थे। कुछ ही देर में माता के आदेश पर मेरे प्रिय आकाश ने वेशभूषा बदल ली, और वापस से घर वाले साधारण वस्त्रों को धारण कर लिया। मेघों ने फैल-फैल कर एक गहरी नीली, स्लेटी रंग की, चादर बुन दी थी और पूरा आसमान एक समान हो गया था।
परंतु अभी भी ऊपर वाली काली-काली जुल्फ़ें हवा के संग पकड़ा-पकड़ी का खेल खेल रही थीं। हवा भी बादलों की क्रीड़ा देख, मंद मंद मुस्कुराती हुई प्रतीत हो रही थी।
मां की नीचे से आवाज आई, "घंटा भर लगता है क्या नाली की जाली साफ करने में? चाय नहीं पीनी?"
मैं मुस्कुराई। आकाश ने पलके झपका कर मुझे आज्ञा दी, और एक बूंद उसकी आंखों से छलक कर मेरे हाथ पर आ गिरी।
"तुम मुझे सबसे प्रिय हो प्रिये। जल्दी ही मिलते हैं। ध्यान रखना अपना अच्छे से," मैंने कहा, और हथेली से फूंक मारते हुए, धन्यवाद को, हवा के संघ भेज दिया।
आज का दिन सच में बहुत ही तृप्त करने वाला और प्यारा था।
कुछ और तस्वीरें—





I hand wrote it first, then I typed it through phone. Hindi typing is no easy thing. It took quite a lot of time, but I am so happy that I wrote something in absolute Hindi. I didn’t even edit it much. There are lots of grammatical mistakes. Please don’t mind them. I wanted this to be as natural and as raw as it could be. Thank you.
आपका सहयोग बहुत ही मायने करता है। यहां बने रहने के लिए बेहद शुक्रिया।
इसे पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। यह मेरी एक नई कोशिश थी और सच बताऊं तो मुझे इसे लिखने में बहुत मजा आया।
मैं आगे भी कोशिश करूंगी की हिंदी में कभी-कभी कुछ लिखा करूं, क्योंकि हिंदी में लिखना कोई आसान बात नहीं है। आपके सहयोग और आपके समय के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। मैं दिल से आपकी आभारी हूं।
इस रचना पर आपके विचार मेरे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं ।कृपया अपने विचार मेरे संग जरूर साझा करें। और अगर आप अपने इस प्रकार के कुछ अनुभव मेरे साथ साझा करना चाहें, तो मुझे उन्हें सुनने में बहुत दिलचस्प होगी।
Ps:- Let’s come back into ‘real-me’ mode. Damn! I am so sorry if this post seems unnecessary long or annoying. But I really loved writing it. It took lots of time and effort, but it seems worth it as I am ending it now. The pictures—I know they are pretty similar—were the ones clicked in real time as said in above-mentioned writing.
You might already know my obsession with sky. How it all started, is a story for another one. But all I want to say is—Sky is love.
Thank you so much for bearing with me and for your patience. It really means a lot to me.
Until Next Time,
Take great care and let’s try to spend more time around sky and outside. We all have really got addicted to our phones. We got to enrich our lives at least a little bit.
I’ll try too.
Seeya soon in the next one,
Thanking you,
Yours,
Ameliorating A.
ये हल्की बारिश के दिलकश फुहारों जैसा है। पढ़ने के दौरान चेहरे पे मुस्कान बनी रही। बहुत ख़ूब।
ये वाक्य मुझे बेहद पसंद आए:
1. उसके ऊपर गाढ़े नीले और सफेद रंग के मिश्रण से जो रंग उत्पन्न होता हो, उसे रंग की एक चादर, कुछ ऊपर तक फैली हुई थी।
2. तुम लोग बस गगन की तस्वीरें ही खींच सकते हो, असल में क्या कभी बादल छू पाते हो? या कभी इस पार की स्वच्छ मुलायम हवा को महसूस कर पाते हो? नहीं ना? और करो भी कैसे? तुम सब ढोंगी हो।
3. मेघों ने फैल-फैल कर एक गहरी नीली, स्लेटी रंग की, चादर बुन दी थी और पूरा आसमान एक समान हो गया था।
Loved it, Many times it happens, we miss such weather - either being busy or just scrolling. Thanks to u for verbalising this act , it may make your readers mindful for next meeting with ' प्रियतम '.
'कभी उससे बातें करते-करते मेरा मन गाने सुनने को ललचा जाता है, तो कभी उसकी मनमोहक छवि को अपने यादों के बक्सों में कैद करने को।'
(Happens a lot)
I loved that you chose a description rather than poetry , it has painted a picture that I will be craving for the Mausam just before Baarish.
Your "अभिन्न अंग- फोन " might have captured static beauty of the scene. But this description gave a moving memory - काली काली जुल्फों के फंदों ने उलझा दिया !
( Your dedication to write it is visible in long form of this post , it not annoying at all)